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Южная Корея

वर्ष 2014 बालक शिक्षकों का प्रशिक्षण

  • Страна | कोरिया
  • Дата | 11 декабря 2014

साधारणत: कहा जाता है कि शिक्षण एक अत्यंत महत्वपूर्ण योजना है जो बहुत दूर स्थित भविष्य के लिए बनाई जाती है। चर्च ऑफ गॉड “मानव जाति की मार्गदर्शक पुस्तक,” बाइबल के आधार पर चर्च के बालकों में उचित प्रकार की धारणाओं का निर्माण करने के लिए उनकी उम्र के अनुसार शिक्षण योजना बनाता है और हर हफ्ते सब्त के दिन की पाठशाला का संचालन करता है।

ⓒ 2014 WATV
11 दिसंबर को ओकछन गो एन्ड कम प्रशिक्षण संस्थान में “वर्ष 2014 बालक शिक्षकों का प्रशिक्षण” आयोजित किया गया। प्रत्येक चर्च के बालक शिक्षकों को प्रोत्साहित करने और उनकी कर्तव्य–भावना जाग्रत करने के लिए आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश भर के 400 चर्चों के बालक शिक्षकों और 3,200 पुरोहित कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।

प्रशिक्षण के पहले भाग में आराधना के दौरान माता ने उन शिक्षकों से जो चर्च में बालकों को सही ढंग से शिक्षित करने का प्रयत्न करते हैं, यह कहते हुए उनके दिल में गर्व की भावना पैदा की, “आप अपनी–अपनी योग्यता के अनुसार सुसमाचार के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। स्वर्ग में आपके पुरस्कार सर्वदा चमकते रहेंगे।” उन्होंने यह भी कहा, “शिक्षण का मूल आधार प्रेम है। आज चरित्र की अपेक्षा ज्ञान की अधिक महत्ता है, और पीढ़ियों के बीच अंतराल बढ़ने से एक दूसरे की सोच–विचार का आदान–प्रदान करना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है।

ⓒ 2014 WATV
इसलिए प्रेम के माध्यम से बालकों को शिक्षित करने के लिए आवश्यक गुण ‘धीरज’ है। जैसे विश्वास वचन सुनने से उपजता है, व्यवहार भी दूसरों का व्यवहार देखने से उपजता है। इसलिए चाहे कैसी भी कठिनाइयां आएं, कृपया पवित्र आत्मा से प्रेरणा पाकर नम्र भाव से उनकी देखभाल और शिक्षित कीजिए। तब बालक जैसे उन्होंने देखा और सीखा है, वैसे ही विकसित होंगे।”

प्रधान पादरी किम जू चिअल ने इस पर जोर दिया कि शिक्षण मनुष्य के जीवन पर ज्यादा प्रभाव डालता है। फिर उन्होंने निश्चयपूर्वक कहा, “आपके सामने कठिनाइयां और दुख आएं, कृपया इसहाक के समान स्वर्ग की सन्तानों के रूप में हमेशा हंसते–मुस्कुराते हुए बच्चों के साथ व्यवहार करें, और उन्हें अच्छी यादें और अनुग्रहपूर्ण शिक्षाएं दें।” उन्होंने यह भी कहा, “वयस्क लोग मासूम बच्चों से बहुत सी बातें सीख सकते हैं। बच्चों को सिखाएं, और अगर हमें उनसे सीखना हो, तो नम्र भाव से सीखें, और सिय्योन को हमेशा हंसी, आनन्द और भजन गाने की आवाज से भरें।”

प्रशिक्षण का दूसरा भाग वीडियो प्रदर्शन के साथ शुरू हुआ। वीडियो में दिखाया गया कि यदि हम बच्चेच की एक हद से ज्याददा प्रशंसा करें, तो वह अहंकार से भर जाता है और दबाव में आ जाता है कि वह अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा या नहीं, और प्रेम के साथ लगातार बच्चों की परवाह करने और उनसे बातचीत करने से बच्चों के व्यक्तित्व का विकास होता है। इससे वे सब समझ सके कि बच्चों के प्रति उनकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए।

उसके बाद शिक्षण सामग्रियों के बारे में बताया गया। बालकों के लिए पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध हैं। अब “सुन्दर स्वर्गदूत बनें” पुस्तक में 4–5 और 6–7 साल की उम्र के लिए दो प्रकार की पुस्तकें हैं। और “मुझे परमेश्वर पसंद है” पुस्तक में कक्षा 1–2, 3–4 और 5–6 के लिए तीन प्रकार की पुस्तकें हैं। ये अंग्रेजी, स्पेनी और नेपाली में अनुवादित होकर विदेशों में प्रसारित हो रही हैं। पीढ़ियों के बीच अंतराल बढ़ने के कारण परिवार में बोलचाल बंद हो रहा है। इस समस्या को हल करने के लिए, नए वर्ष की पाठ्य पुस्तकें “सोच–विचार के आदान–प्रदान” को केंद्र में रखकर बनाई गई हैं। उनमें उम्र के अनुसार बालकथा, उंगलियों का खेल, हस्तकला, रंगाई इत्यादि जैसे विभिन्न मनोरंजक खंड तैयार किए गए हैं। प्रत्येक खंड के अर्थ और उनकी विशेषताओं को समझाया गया है, और उनका सुप्रयोग करने का ढंग सिखाने के लिए एक नाटक का भी प्रदर्शन किया गया।

इस तरह प्रशिक्षण समाप्त हो गया। शिक्षकों के चेहरे प्रफुल्लित एवं प्रसन्न दिखाई दिए। उनके चेहरे से साफ झलक रहा था कि उनकी चिंता का समाधान किया गया है। एक शिक्षिका ने कहा, “क्लास में ज्यादातर समय केवल मैं ही बात करती थी। लेकिन मैंने एहसास किया कि बच्चों की बात सुनना और उनके मन को समझना महत्वपूर्ण है। मैं उन बच्चों के साथ जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कुशल नहीं हैं, सोच–विचार का आदान–प्रदान करना चाहती हूं।” दूसरी शिक्षिका ने दृढ़ संकल्प किया कि “मैं बच्चों से खुलकर मुस्कुराते हुए बात करूंगी ताकि बच्चे अपनी मुस्कान न खोएं।”

हमें पूरी उम्मीद है कि नए वर्ष 2015 में वे सिय्योन के बालकों को माता के प्रेम के साथ सिखाकर उनका संसार के नमक और ज्योति के रूप में पालन–पोषण करें।

ⓒ 2014 WATV
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